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गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

गोवर्धन पर्व पर पुराईनबंध में उमड़ी आस्था की भीड़ — भक्ति, संस्कृति और एकता का प्रतीक बना आयोजन

जशपुर       फरसाबहार के ग्राम पुराईनबंध में प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी गोवर्धन पूजा एवं मेला का भव्य आयोजन किया गया। ग्रामीणों ने इस पर्व को परंपरागत आस्था और उल्लास के साथ मनाया। सुबह से ही पूरा गांव भक्तिमय वातावरण में डूबा रहा। आस-पास के गांवों से भी श्रद्धालु बड़ी संख्या में पुराईनबंध पहुंचे, जिससे गांव में मेले जैसा माहौल बन गया।


भक्ति और परंपरा से सराबोर रहा गांव

सुबह के समय महिलाओं ने घर आंगन को सजाया, रंगोली बनाई और पारंपरिक वेशभूषा में सुसज्जित होकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना की। ग्रामीणों ने अपने घरों की गायों के चरण धोकर आरती उतारी, उन्हें फूल और गुड़-चारा अर्पित किया। इस दौरान गोबर से बनाए गए गोवर्धन पर्वत का प्रतीकात्मक स्वरूप स्थापित कर उसकी पूजा की गई। श्रद्धालुओं ने भगवान श्रीकृष्ण की जयकारों के साथ गोवर्धन परिक्रमा की और गांव में धार्मिक भजन गूंजते रहे।

ग्रामीणों का कहना था कि गोवर्धन पूजा प्रकृति, पशु और मानव के संबंधों का प्रतीक है। भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर यह संदेश दिया था कि प्रकृति की रक्षा और सेवा ही सच्ची पूजा है। इसी प्रेरणा से आज भी ग्रामीण अपनी गायों और पर्यावरण के प्रति प्रेम और सम्मान दर्शाते हैं। को गांव में भव्य मेला और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डीडीसी श्रीमती दुलारी सिंह थीं, जबकि मंच पर सरपंच श्रीमती अनुज कुमारी, बीडीसी सदस्य अनिल यादव, मुख्यमंत्री के निज सहायक भजन साय, तथा पूर्व भाजपा मंडल अध्यक्ष कपिलेश्वर सिंह विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
मुख्य अतिथि और अतिथियों ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। मंच संचालन स्थानीय युवा समूह द्वारा किया गया।

अतिथि श्रीमती दुलारी सिंह ने अपने प्रेरणादायक संबोधन में कहा 

गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, प्रकृति और जीवों के प्रति कृतज्ञता का पर्व है। भगवान श्रीकृष्ण ने जब इंद्रदेव के क्रोध से ब्रजवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को उठाया, तब उन्होंने हमें सिखाया कि संकट के समय एकता और विश्वास से कोई भी कठिनाई पार की जा सकती है। यह पर्व हमें प्रकृति की उपासना और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। आयोजन हमारे संस्कृति और परंपरा की जड़ों को मजबूत करते हैं। यह जरूरी है कि नई पीढ़ी इन आयोजनों से जुड़कर अपने धार्मिक और नैतिक मूल्यों को समझे। गोवर्धन पूजा हमें सिखाती है कि गौ, ग्राम और गंगा हमारी आस्था के आधार हैं, और इनकी रक्षा करना हम सबका कर्तव्य है।”



डीडीसी ने उपस्थित ग्रामीणों को संबोधित करते हुए कहा कि ग्राम पुराईनबंध जैसे गांव जहां समाज एक साथ मिलकर परंपरा निभाते हैं, वे गांव संस्कृति और सामाजिक एकता के आदर्श उदाहरण हैं।

भक्ति गीतों और नृत्य ने बांधा समा

कार्यक्रम में स्थानीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत भजन, नृत्य एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने उपस्थित श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। भजन “गोवर्धन गिरिधारी” और “श्याम तेरी बंसी पुकारे” जैसे गीतों पर सभी भक्त झूम उठे। बच्चों ने श्रीकृष्ण की लीलाओं पर नृत्य प्रस्तुत किया, जिसे देख दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत किया।

मेले में हस्तशिल्प, मिठाई, खिलौने, झूले और स्थानीय वस्तुओं की दुकानें सजी रहीं। महिलाओं ने पूजा के बाद प्रसाद वितरण किया और एक-दूसरे को पर्व की शुभकामनाएं दीं। देर रात तक गांव में भक्ति गीत और पारंपरिक लोकनृत्य की धुनें गूंजती रहीं।

🌺 सामाजिक एकता और संस्कृति का प्रतीक बना आयोजन

गांव के वरिष्ठ नागरिकों ने बताया कि यह आयोजन पिछले कई वर्षों से लगातार किया जा रहा है, जिससे गांव में आपसी भाईचारा, एकता और धार्मिक भावना बनी रहती है। उन्होंने कहा कि गोवर्धन पूजा न केवल भगवान श्रीकृष्ण की आराधना का पर्व है, बल्कि यह प्रकृति और पशुधन के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर भी है।इस प्रकार ग्राम पुराईनबंध में आयोजित गोवर्धन पूजा और मेला धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक गौरव और सामाजिक समरसता का प्रतीक बन गया। श्रद्धालुओं ने भगवान श्रीकृष्ण से सुख-समृद्धि, वर्षा और गांव की उन्नति की प्रार्थना की।


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