जशपुर:-- मानसून से पहले चक्रवाती तूफान की जोरदार बारिश, ओलावृष्टि और उसके बाद हो रही रोजाना बारिश ने ग्रीष्मकालीन धान का उत्पादन करने वाले किसानों की कमर तोड़ दी है। किसानों की फसल अब ना तो काटने लायक है और ना ही कटी हुई फसल मिसाई के लायक बची है। किसानों को इस वर्ष ग्रीष्मकालीन धान में बड़ा नुकसान हुआ है। सरकार की ओर से मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है।

गर्मी के दिनों में जिले भर में खेत सूनसान पड़े रहते हैं, पर कोतबा एरिया में इस सीजन में भी ग्रीष्मकालीन फसल लहलहाती है। कुछ दिन पहले ओलावृष्टि से फसल खराब हुई थी, पर उस वक्त राजस्व विभाग और कृषि विभाग ने 25 प्रतिशत से कम नुकसान बताकर अपने हाथ खड़े कर लिए थे पर सप्ताह भर से रोज बारिश होने से किसान आपदा में विपदा की मार झेल रहे है। विदित हो कि वर्ष 2005-06 में बने खमगड़ा जलाशय का लाभ किसानों को मिल रहा है। कोतबा क्षेत्र में इस बार करीब 5 हजार एकड़ से अधिक में किसानों ने धान की फसल की है जो पक गए हैं और लगभग 15 प्रतिशत किसानों ने कटाई भी पूरी कर दी है, जबकि 85 प्रतिशत किसानों के फसल अब खेतों में सड़ने के कगार पर है। लगभग चार सौ किसानों के द्वारा इस बार 5 हजार एकड़ में धान का उत्पादन हुआ है।
समर्थन मूल्य नहीं मिलने से बिचौलिए उठाते हैं लाभ
ग्रीष्मकालीन धान की फसल का समर्थन मूल्य नहीं मिलने से किसान उपज को आधे दाम में बेचने से क्षुब्ध हैं। उनका कहना है कि उन्हें इस मौसम में भी प्रोत्साहन सरकार की ओर से मिलनी चाहिए। समर्थन मूल्य नहीं होने से बिचौलियों की चांदी हो रही है। क्षेत्र के आदिम जाति सहकारी सेवा समिति में 1200 किसान पंजीकृत हैं। जो बरसात के दिनों में धान बेचते हैं, पर गर्मी के दिन में धान उत्पादन करने वाले 1200 में से चार सौ किसान योजना में शामिल हैं। चार सौ किसानों को इस मौसम में समर्थन मूल्य का लाभ नहीं मिलता है और वे बिचौलियों को आधे दाम में धान बेचने मजबूर है।
50 प्रतिशत से ज्यादा नुकसान पर मिलता है मुआवजा
ग्रीष्मकालीन धान या अन्य फसलों में किसी प्रकार के प्रोत्साहन योजना सरकार द्वारा नही चलाई जा रही है। यदि किसानों के 50 फीसदी या अधिक नुकसान हुआ है तो राजस्व विभाग उसका प्राकलन तैयार किया जाता है। शासन स्तर से स्वीकृति पश्चात ही क्षतिपूर्ति प्रदान की जाती है। बरसात के फसलों में धान की अपेक्षा अन्य दलहन तिलहन फसलों को लगाने पर किसानों को शासन द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है।'''' श्याम सुंदर पैंकरा, कृषि विस्तार नोडल अधिकारी कोतबा।
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